हल्द्वानी/लमगड़ा
उत्तराखंड सांस्कृतिक समिति की ओर से राज्य स्तरीय सांस्कृतिक परिचर्चा भेट घाट का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में उत्तराखंड की लोक संस्कृति एवं समाज में गीतकारों की भूमिका और गीत लेखन के क्षेत्र में भविष्य की संभावनाएं विषय पर प्रदेश के कई गीतकारों, गायकों और संगीतकारों ने प्रतिभाग लिया। इस मौके पर उत्तराखंड की बोली-भाषा में गीत लेखन के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले गीतकारों को सम्मानित भी किया गया। जिसमें युवा गीतकार के लिए लेखक और गायक राजेंद्र ढैला को सम्मानित किया गया। आगे पढ़िए
बता दें कि राजेंद्र ढैला का पैतृक गांव अल्मोड़ा जनपद के लमगड़ा में है वे लंबे समय से पहाड़ की लोक संस्कृति को संवारने में अपनी घुघुती जागर टीम के जरिये काम कर रहे है। वह लगातार पहाड़ की लोक संस्कृति को बचाने के लिए गीत ओर कविताओं के माध्यम से लोगों को जागरूक कर रहे है। आज के दौर में फूल्हड़ गीतों को छोड़कर उन्होंने पहाड़ की संस्कृति और लोकलाओं, रीति-रिवाजों पर गीत लिखे जिन्हें लोगों ने खूब पसंद भी किया। जिसके लिए उत्तराखंड सांस्कृतिक समिति की ओर से उन्हें युवा गीतकार का सम्माान दिया गया।
राजेंद्र ढैला द्वारा लिखे चर्चित गीतों में मुख्य रूप से पहाड़ ल्या रयूं, माया ल्हैगे भाबरा, मैं एक पहाड़ी छूं, ईजू प्यारी ईजा, ऐगे ऋतु रैणा भिटौली गीत, घीं संगरांत, आई दिवाली, नव संवत्सर, हर घर तिरंगा, भू कानून, विकास देखीना, रंग बिरंगी चहा, देवभूमि को बेटा, तुम लौटी नि आया आदि गीत शामिल है। उनके इन गीतों में एक खास संदेश देकर लोगों तक पहुंचाने का काम किया। उनका फेसबुक और यूट्यूब पर घुघुती जागर के नाम से चैनल और पेज है।