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बेरोजगार युवाओं के लिये स्वरोजगार का साधन बना “काफल”, क्या आपने भी खाया ? , मगर काफल खाने के फायदे जानकर चौंक जाएंगे आप !

बिरेन्द्र सिंह कपकोटी

पहाड़ों में रहने वाला कोई व्यक्ति शायद ही हो जिसे काफल के बारे में पता ना हो लेकिन आज हम आपको बताएंगे काफल से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें बताएंगे ! .

क्या है काफल

रसीले, खट्टे और मीठे स्वाद से भरपूर काफल को पहाड़ों में पाए जाने वाले फलों का राजा भी कहा जाता है . वैसे तो पहाड़ों के जंगलों में कई प्रकार के फल होते हैं जैसे हिस्यालु, किल्मोड़ा , बेड़ू आदि लेकिन इन सब में काफल बहुत अधिक लोकप्रिय फल होता है . यह फल ठंडी जलवायु में पाए जाते हैं . इसका लुभावना गुठली युक्त फल गुच्छों में लगता है . इसका रंग प्रारंभिक अवस्था में हरा होता है उस समय यह बहुत खट्टे होते हैं लेकिन मई पहले सप्ताह में ये पककर लाल हो जाते हैं उस समय ये मीठे व रसदार होते हैं मुख्यतः ये लगभग 2-3 माह तक रहते हैं .

!पहाड़ के लोगों के लिये स्वरोजगार का साधन बना काफल!

आजकल काफल को कई बेरोजगार युवाओं ने स्वरोजगार से जोड़ दिया है . यहाँ तक की देश के अन्य राज्यों में के लोग भी यहाँ आकर काफल बेचकर अच्छा पैसा कमा रहे हैं . यह फल पहाड़ों से सटे हुए बाजारों में 500-1000 रुपये किलो के हिसाब से बिक रहे हैं हमारे पहाड़ों में रह रहे मातृशक्तियो के लिये भी अच्छा स्वरोजगार का साधन बना हुआ है!

वानस्पतिक नाम

काफल का वानस्पतिक नाम मेरिका एस्कुलाटा है। यह मध्य हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाला सदाबहार वृक्ष है।

काफल की खेती नही होती है

यह फल की कोई खेती नही होती है कहने का मतलब है ये फल को
तैयार करने के लिये आपको किसी भी प्रकार की मेहनत की जरूरत नही होती है इसके पेड़ों की संख्या बढ़ाने में जंगली पक्षियों का बड़ा योगदान होता है ! यह फल जंगलों में स्वतः तैयार होते हैं !!

बेहद आकर्षक होता है काफल !

यह फल दिखने में बहुत ही खूबसूरत होते हैं . काफल तीन रंगों का होते हैं हरा, लाल व हल्का काला . हरा रंग तब होता है जब यह फल कच्चा होता है , लाल जब होता जब यह अच्छी तरह पक जाते हैं या फिर पकने की तैयारी पर होते हैं और काला रंग तब होता है यह फल खत्म होने कगार पर होते हैं लेकिन यह फल उस समय बहुत स्वादिष्ट होते हैं! लेकिन जब काफल लाल या हल्का काला रंग का होता है उस समय काफल बेहद आकर्षक होते हैं खाने में भी मीठे व रसदार होते हैं .

उत्तराखंड प्रवासी आते हैं घर काफलों का स्वाद लेने

पहाड़ों से पलायन कर चुके उत्तराखंड के प्रवासी अन्य प्रदेश से काफल खाने के लिये घर आते हैं . क्योंकि एक तरफ देश के अन्य महानगरों में भीषण गर्मी के चलते बच्चों के स्कूलों की छुट्टियां हो जाती है दूसरी तरफ पहाड़ों का बेहद खूबसूरत मौसम (ना जाड़ा ना गर्मी) को देखते हुये व काफल खाने में पहाड़ों प्रवासी घर आते हैं . यदि कोई परिवार किसी कारणवश घर नही आ पाता है तो तो उसके गाँव में रिश्तेदार उनके लिये प्रदेशों में ही भेजते हैं!

काफल को लेकर पहाड़ के लोकगीत व झोड़े भी हैं।

काफल को लेकर पहाड़ के लोकगीत व झोड़े भी हैं। प्रसिद्ध रंगकर्मी मोहन उप्रेती रचित बेडु पाको बार मासा, नरेन काफल पाको चेत मेरी छैला, आज भी हर पहाड़ के लोग गनगुनाते रहते हैं ।

काफल खाने के फायदे

▪️यह जंगली फल एंटी-ऑक्सीडेंट गुणों के कारण हमारे शरीर के लिए फायदेमंद है।

▪️इसका फल अत्यधिक रस-युक्त और पाचक होता है।

▪️इस फल को खाने से पेट के कई प्रकार के विकार दूर होते हैं।

▪️मानसिक बीमारियों समेत कई प्रकार के रोगों के लिए काफल काम आता है.

▪️इसके तने की छाल का सार, अदरक तथा दालचीनी का मिश्रण अस्थमा, डायरिया, बुखार, टाइफाइड, पेचिस तथा फेफड़े ग्रस्त बीमारियों के लिए अत्यधिक उपयोगी है।

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