भारतीय सेना में मैनपावर ऑप्टीमाइजेशन के लिए कॉन्ट्रेक्ट पर दिग्गजों की हायरिंग, क्रॉस-स्किलिंग टेक्निकल ट्रेड और अपनी स्टेटिक यूनिट्स में सर्विसेज की आउटसोर्सिंग करने की योजना है. जी हाँ अब
भारतीय सेना में मैनपावर ऑप्टीमाइजेशन के लिए कॉन्ट्रेक्ट पर दिग्गजों की हायरिंग, क्रॉस-स्किलिंग टेक्निकल ट्रेड और अपनी स्टेटिक यूनिट्स में सर्विसेज की आउटसोर्सिंग करने की योजना है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस योजना को अगले पांच साल तक लागू किया जाना है, जिसका खासतौर पर मकसद सेनाओं की बेसिक समस्याओं को कम करना है. जानकारी के अनुसार एक बरिष्ठ सेना अधिकारी ने बताया कि इस प्लान पर काम चल रहा है और सेना के सभी विंग को अपना राइटसाजिंग प्लान पेश करने को कहा गया है. बताया गया है कि तीनों सेनाओं में कुल मैनपावर 12.8 लाख बलों की है, जो कि कम है. कोरोना महामारी की वजह से दो सालों तक सेना में कोई नई हायरिंग नहीं हुई, जिससे मौजूदा समय में 1.25 लाख बलों की कमी है. हालांकि, इस बीच अग्नीवीर योजना के तहत 40 हजार भर्तियां निकाली गई थी, जो कि चार साल का कॉन्ट्रेक्ट माना जा सकता है – इससे सालाना रिटायर होने वाले 60,000 बलों की पूर्ती करना मुश्किल है.
ट्रेनिंग संस्थानों के लिए कॉन्ट्रेक्ट पर होगी हायरिंग
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, एक अधिकारी ने बताया कि कैटगरी ए ट्रेनिंग संस्थानों में दिग्गजों और एक्सपर्ट की कॉन्ट्रेक्ट के आधार पर हायरिंग की जाएगी, जो नए रिक्रूट होने वाले बलों को ट्रेन करेंगे. कैटगरी ए ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में देहरादून स्थित इंडियन मिलिट्री एकेडमी, आर्मी वॉर कॉलेज, म्हौ में इन्फेंट्री स्कूल और अन्य शामिल हैं. वहीं कैटगरी बी ट्रेनिंग संस्थानों में कई रेजिमेंट सेंटर आते हैं. अधिकारी ने बताया कि यह भी विचार किया जा रहा है कि, एनसीसी ट्रेनिंग को भी कॉन्ट्रेक्चुअल दिग्गजों को सौंपा जाए या नहीं.
कई क्षेत्रों में मैनपावर में आएगी गिरावट
आसाना भाषा में कहें तो यह सरकार की सेना में स्थायी रोजगार कम करने की योजना है. वरिष्ठ रक्षा अधिकारी ने कहा कि हथियारों के ऑटोमेशन पर जोर देने से बंदूकों और टैंकों को चलाने वाले कर्मियों की जरूरत कम हो सकती है, जिससे आर्टिलरी और बख्तरबंद कोर के रेजिमेंट में मैनपावर को कम किया जा सकता है. रिपोर्ट के मुताबिक, कई इक्वीपमेंट्स पुराने हो जाने की वजह से उसे इस्तेमाल करने वाले कर्मियों में गिरावट आएगी. यह भी देखा गया है कि फॉर्वर्ड क्षेत्रों में सड़क और अन्य निर्माण कार्यों के लिए कॉम्बेट इंजीनियर की जरूरत नहीं पड़ेगी, क्योंकि अब सिविल कंपनियों का इस्तेमाल बढ़ रहा है.