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सीखने की राह में नन्हे कदमों की चुनौतियाँ

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अंजली कबडोला

बागेश्वर, उत्तराखंड


                   अंजली कबडोला

गनीगांव, उत्तराखंड का एक शांत और मनोरम गांव है. बागेश्वर जिला स्थित गरुड़ ब्लॉक अंतर्गत यह गांव शहर से काफी दूर है. यहां की ठंडी हवाओं में बच्चों की खिलखिलाहट घुली रहती है, मगर उन मासूम हंसी के पीछे एक अनकही दास्तान छुपी है – सीखने की अनवरत जिज्ञासा और चुनौतियां. सीखने की जिज्ञासा उन्हें गांव में संचालित राजकीय प्राथमिक विद्यालय तक तो ले आता है मगर यहां शिक्षकों की कमी उनके सीखने में एक बड़ी बाधा उत्पन्न करता है. 27 वर्षीय राधा देवी बड़ी उम्मीदों से कहती हैं, “मेरा बेटा बहुत जिज्ञासु है. वह हर चीज़ को समझने की कोशिश करता है, कभी-कभी घर आकर मुझसे सवाल करता है, जिसका उत्तर मैं नहीं दे पाती हूं. उसे स्कूल जाना और पढ़ना तो बहुत पसंद है, लेकिन स्कूल में एक ही शिक्षक हैं. जिनके ज़िम्मे बच्चों को पढ़ाने के साथ साथ बाकी काम भी देखना होता है. ऐसे में बच्चों की पढ़ाई में बड़ी रुकावट आती है” राधा देवी के शब्दों में चिंता तो है, मगर उससे कहीं ज्यादा था अपने बच्चे की लगन पर गर्व भी है.

गांव की एक अन्य महिला देवकी देवी की आंखों में अपने बच्चों को लेकर अनगिनत सपने हैं. लेकिन चिंता भी है. वह कहती हैं कि “मेरी बेटी पांचवीं कक्षा में है और बेटा चौथी कक्षा में पढता है. लेकिन मुझे चिंता है कि जब मेरी बेटी छठी कक्षा में जाएगी, तो क्या वह सही से पढ़ पाएगी? क्योंकि एक शिक्षक सभी बच्चों पर कितना ही ध्यान दे पाते होंगे?” यह सवाल सिर्फ देवकी देवी का नहीं, बल्कि गनीगांव की हर उस माँ का है जो अपने बच्चों को आगे बढ़ते देखना चाहती है. पंचायत में दर्ज आंकड़ों के मुताबिक गनीगांव की आबादी लगभग 1445 है और साक्षरता दर करीब 80 प्रतिशत है. इस गांव में स्थापित एकमात्र प्राइमरी स्कूल बच्चों को पढ़ाने के लिए सिर्फ एक ही टीचर नियुक्त है, जिसकी वजह से स्कूल जाने वाले बच्चो के अभिभावक उनकी बेहतर शिक्षा को लेकर परेशान दिखते हैं.

इस स्कूल की छात्रा रह चुकी 19 वर्षीय किशोरी दीपा बचपन की उन यादों को संजोए हुए कहती है, “जब मैं पहली बार स्कूल गई थी, तब सब कुछ नया था. पहली बार किताबों को खोलना, रंगों से खेलना, अक्षरों को जोड़ना, यह सब एक नई दुनिया में कदम रखने जैसा था. अब छोटे-छोटे बच्चे भी उसी दुनिया में प्रवेश कर रहे हैं. वे सीखना चाहते हैं, आगे बढ़ना चाहते हैं. गांव के कई बच्चे इस छोटी सी पाठशाला से बड़े सपने लेकर निकलना चाहते हैं. कुछ डॉक्टर बनना चाहते हैं, कुछ शिक्षक, तो कुछ अपनी कल्पनाओं को रंगों में उकेरना चाहते हैं. मगर उनके इस सपने को पूरा करने के लिए हर दिन एक नई चुनौती होती है. सबसे बड़ी चुनौती विद्यार्थियों की तुलना में शिक्षक की संख्या कम होना है.”

वहीं स्कूल के एकमात्र शिक्षक रमेश अपनी जिम्मेदारी को पूरी लगन से निभाते हैं. उनकी आंखों में बच्चों को आगे बढ़ते देखने की चमक साफ झलकती है. वह कहते हैं कि “यहां पढ़ने वाले बच्चे बहुत होशियार हैं. वे सीखना चाहते हैं, समझना चाहते हैं. जब वे कोई नया शब्द सीखते हैं या कोई सवाल हल करने में जो उत्साह झलकता है, वही मेरे लिए सबसे बड़ी खुशी होती है.” उनकी बातें बताती हैं कि शिक्षा केवल किताबों से नहीं, बल्कि एक शिक्षक की मेहनत और बच्चों की जिज्ञासा से जीवंत होती है. वह कहते हैं कि यहां के बच्चे हर सुबह उम्मीदों के साथ स्कूल का रुख करते हैं. उनके छोटे-छोटे कदम जब मिट्टी की पगडंडियों से होकर स्कूल के आंगन तक पहुँचते हैं, तो उनमें एक अनकही ऊर्जा होती है. यह ऊर्जा उन्हें आगे ले जाएगी, उनमें सीखने की प्रवृति को आगे बढ़ाएगी.

इस संबंध में सामाजिक कार्यकर्ता नीलम ग्रैंडी कहती हैं कि “प्राइमरी स्कूल बच्चों में शिक्षा की नींव रखते हैं. यहीं पर वे पहली बार किताबों, पेंसिल, कॉपी और रंगों से परिचित होते हैं. यह उम्र उनमें खेल-खेल में सीखने की होती है. लेकिन अगर स्कूल में शिक्षक की कमी होगी तो बच्चों की पढ़ाई पर इसका असर पड़ना स्वाभाविक है. यहां नियुक्त एकमात्र शिक्षक को पढ़ाने के साथ-साथ प्रशासनिक कार्य भी करने पड़ते हैं. ऐसे में बच्चों की पढ़ाई सही से नहीं हो पाती है. इस स्थिति के चलते आर्थिक रूप से संपन्न गांव के कई परिवार अब अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए शहरों की ओर रुख कर रहे हैं, ताकि वे बेहतर शिक्षा प्राप्त कर सकें. लेकिन यह सभी के लिए संभव नहीं है. गांव के अधिकतर अभिभावक आर्थिक रूप से इतने सक्षम नहीं होते कि वे अपने बच्चों को गांव से बाहर पढ़ने भेज सकें. हालांकि गरुड़ की खंड शिक्षा अधिकारी कमलेश्वरी मेहता आश्वस्त करती हैं कि जल्द ही इस प्राथमिक विद्यालय में एक और शिक्षक की नियुक्ति होने वाली है. जिससे बच्चों की पढ़ाई में आने वाली सबसे बड़ी बाधा दूर हो जाएगी. शिक्षा विभाग की ओर से इस संबंध में प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है.

बहरहाल, गनीगांव के लोग इस छोटे से स्कूल को एक बड़े सपनों की पाठशाला मानते हैं. उनका सपना है कि उनके बच्चे सही शिक्षा पाएं, आगे बढ़ें और अपने सपनों को पूरा करें. यह कहानी सिर्फ गनीगांव की नहीं, बल्कि हर उस गाँव की है जहाँ बच्चे हर सुबह एक नई उम्मीद के साथ स्कूल जाते हैं, सीखते हैं और एक दिन अपने सपनों को हकीकत में बदलने का सपना देखते हैं. शिक्षा की यह यात्रा यूँ ही चलती रहेगी, क्योंकि हर बच्चा के अंदर एक अनकही कहानी है – सीखने की, आगे बढ़ने की और सपनों की अनवरत उड़ान भरने की.

उपरोक्त लेख हमें चरखा फीचर के माध्यम से प्राप्त हुआ है !


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