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बागेश्वर:- प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को तरसते ग्रामीण !

बागेश्वर:- प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को तरसते ग्रामीण !

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रेनू


गरुड़, बागेश्वर,उत्तराखंड

“कुछ समय पहले जब मैं गर्भवती थी तो गांव में स्वास्थ्य की कोई उचित सुविधा नहीं थी, जिसकी वजह से मुझे प्रसव पीड़ा के दौरान अपने गांव से 48 किमी दूर बागेश्वर के जिला अस्पताल जाना पड़ा था. इस दौरान मुझे जो कष्ट हुआ, वो पीड़ा मै कभी नही भूल सकती। अस्पताल में जाकर मुझे पता चला की मेरे गर्भाशय में ट्यूमर है। अगर हमारे गांव में स्वास्थ्य केंद्र की बेहतर सुविधा होती और जांच की सारी सुविधाएं होती तो शायद शुरू में ही मुझे इस बीमारी का पता चल जाता। यह कहना है 27 वर्षीय गंगा देवी का, जो पिंगलो गाँव की रहने वाली है। यह गाँव पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के गरुड़ ब्लॉक से लगभग 22 किमी की दूरी पर बसा है। जहां लोगों के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की कोई सुविधा नहीं है।

हालांकि राज्य सरकार ने अस्पताल की कमियों को दूर करने के लिए बहुत सी योजनाएं चलाई हैं। इसके अलावा ग्रामीण स्तर पर स्वास्थ्य सुविधा को बेहतर करने के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद राज्य के ऐसे बहुत से गांव हैं जहां स्वास्थ्य की सुविधा नाममात्र की है, वहीं पिंगलों गांव के लोगों की शिकायत तो यह है कि उन्हें स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर कुछ नहीं मिला है। इस संबंध में 22 वर्षीय एक किशोरी अंशिका की शिकायत है कि “हमारे गांव में कोई स्वास्थ्य केंद्र है ही नहीं। जिसकी वजह से हमें बहुत सी परेशानियाँ झेलनी पड़ती हैं। खासतौर से जब मुझे पीरियड्स होते हैं तो कई बार मुझे असहनीय दर्द होता है। इस दौरान काफी रक्तस्राव भी होता है। जिसके लिए मुझे डॉक्टर को दिखाने और दवा लेने की जरूरत पड़ जाती है। लेकिन गाँव में महिला डॉक्टर की बात तो दूर, स्वास्थ्य केंद्र की सुविधा तक नहीं है। जिसकी वजह से कई मुझे असहनीय दर्द की स्थिति में ही बागेश्वर या बैजनाथ अस्पताल जाना पड़ जाता है।”

गांव की एक अन्य किशोरी गुंजन बिष्ट का कहना है कि “हमने हमेशा गाँव में स्वास्थ्य से जुड़ी चीजों की कमियां ही देखी हैं। खांसी, जुकाम होने पर भी हमें बैजनाथ या बागेश्वर के जिला अस्पताल ही जाना पड़ता है। जिसमें हमें गाड़ी वाले को किराया भी देना पड़ता है। घर वालों के पास इतने पैसे नहीं होते हैं कि हर माह गाड़ी भाड़ा दें और दवा पर पैसे खर्च करें। यह हमारे लिए बहुत मुश्किल हो जाता है।” वहीं 30 वर्षीय एक महिला उषा देवी का कहना है कि “जब मैं बीमार होती हूं तो मुझे बैजनाथ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र जाना पड़ता है क्योंकि हमारे गांव में कोई स्वास्थ्य सुविधा नही है। इतनी दूर जाने के लिए, भी गाड़ियों का मिलना बहुत कठिन होता है। हर गांव विकास कर रहा है, सरकार गांवों में सुविधाएं बढ़ा रही है, पर हमारे गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी कब स्थापित होगा? इसका कुछ पता नही है।

एक अन्य महिला 31 वर्षीय पुष्पा देवी का कहना है कि हमारे गांव से लगभग 22 किमी दूर बैजनाथ अस्पताल हम लोग जाते हैं लेकिन वहां पर भी हमें प्राप्त दवाइयां नहीं मिल पाती हैं। वह दवाइयां हमें बाहर से खरीदनी पड़ती है। जो अक्सर महंगी होती है। ऐसी स्थिति में जिनकी आर्थिक स्थिति खराब होती है, वह बाहर से भी दवाइयां नहीं ले पाते हैं। अगर हमारे गांव में भी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र खुल जाए तो हमें बहुत ही सुविधा हो जाएगी। इस संबंध में गांव की आशा वर्कर गोदावरी देवी का कहना है कि गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं होने के कारण हमें समय पर गर्भवती महिलाओं की जांच करवाने में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उन्हें जांच के लिए बैजनाथ लेकर जाने में बहुत दिक्कत होती है। कई बार तो प्रसव पीड़ा के दौरान ही उन्हें अस्पताल लेकर जाते समय रास्ते में ही डिलीवरी हो जाती है। जिससे अक्सर जच्चा और बच्चा की जान को खतरा रहता है।”

पिंगलो गांव के ग्राम प्रधान पान सिंह खाती कहते हैं कि “हमारे गांव में कोई स्वास्थ्य केंद्र का नहीं होना सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है। जिस करण गांव के मरीजों विशेषकर गर्भवती महिलाओं को बैजनाथ या बागेश्वर के जिला अस्पताल लेकर जाना पड़ता है। छोटी जांच करवाने के लिए भी यहां के मरीजों को बैजनाथ लेकर जाना पड़ता है। गर्भवती महिलाओं के लिए तो बहुत ही दिक्कत होती है। मैंने कई इसके लिए बार प्रयास भी किया, इसके लिए विभाग और जनप्रतिनिधियों से भी मुलाकात कर उन्हें गांव वालों की समस्याओं से अवगत कराया, लेकिन आज तक कोई सकारात्मक पहल नहीं हुई है और अभी तक पिंगलों गाँव के लोगों को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की सुविधा नहीं मिल सकी है।

उत्तराखंड बजट 2023 -2024 में राजपत्रित और अराजपत्रित पदों के विवरण के अनुसार चिकित्सा तथा लोक स्वास्थ्य विभाग में कुल 9,753 पद स्वीकृत हैं जिसमें से कुल 5,732 पदों पर नियुक्ति है जबकि 4,021 पद अभी रिक्त हैं जो कुल पदों का लगभग 41 प्रतिशत है। होम्योपैथिक चिकित्सा विभाग में कुल 434 पद स्वीकृत हैं जिसमे से 260 पदों पर नियुक्ति है और 174 पद अभी खाली हैं, चिकित्सा शिक्षा विभाग में कुल 6,061 पद स्वीकृत है और कुल 2,737 पदों पर नियुक्ति है जबकि 3,324 पद अभी रिक्त हैं। इसी प्रकार आयुर्वेदिक एवं यूनानी चिकित्सा विभाग में कुल 2,844 पद स्वीकृत हैं और कुल 2,186 पदों पर नियुक्ति है जबकि 658 पद अभी रिक्त हैं और परिवार कल्याण विभाग में कुल 3,821 पद स्वीकृत हैं जिसमे से 1,788 पदों पर नियुक्ति है और 2,033 रिक्त हैं। यह आंकड़े बताते हैं कि उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर अभी बहुत काम करना बाकी है। सरकार को इस प्रकार की नीति और योजनाएं बनाने की जरूरत है जिससे समाज में हाशिये पर खड़े लोगों तक सुविधाओं का समुचित लाभ मिल सके।

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