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बीरेंद्र सिंह कपकोटी
अल्मोड़ा
2004 में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण करने वाले महेंद्र सिंह धौनी ने भारत को क्रिकेट के हर फॉर्मेट में उच्च शिखर तक पहुँचाया। एक विकेट कीपर की हैसियत से टीम में जगह बनाकर ख़ुद को विश्व का सबसे अच्छा विकेट कीपर साबित किया। उनके जज्बे और काबिलियत को देखकर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने टीम की कमान धौनी के हाथ में दी। धौनी ने पूर्ण लगन और जज्बे के साथ इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया। क्रिकेट के सभी प्रारूपों की लगभग सभी ट्रॉफी धौनी की कप्तानी में भारत ने जीती। धौनी को दुनिया में कैप्टेन कूल के नाम से जाना जाता है। धौनी की कप्तानी की पूरी दुनिया लोहा मानती है।
वैसे तो धौनी ने अपने जीवन की शुरुआत रांची से की लेकिन धौनी का पैतृक घर अल्मोड़ा जिले के ल्वाली गाँव में है। धौनी के पिता जी रोजगार के लिए रांची में बस गए थे।
महेंद्र सिंह धौनी अपनी पत्नी साक्षी धौनी तथा बेटी के साथ कुछ दिनों पहले अपने पैतृक गाँव ल्वाली आए। गाँव में उन्होंने अपने ईष्ट देवों की पूजा अर्चना की। धौनी के यहाँ आने पर पूरे क्षेत्र में उल्लास का माहौल था। गाँव में जैसे उनसे मिलने वालों का ताँता सा लग गया था। हर व्यक्ति धौनी के साथ ख़ुद को कैमरे में कैद करना चाह रहा था। देश का इतने महान और चर्चित शख्सियत को अपने सामने देखना एक सपने के जैसा था। धौनी ने भी ख़ुद को पहाड़ का बेटा मानकर हर किसी से खुलकर मिले। गाँव में बुजुर्गों के पाँव छूने से लेकर, गुड़ वाली चाय पीने तक धौनी में हर वह चीज देखी गयी जो पहाड़ी संस्कृति में देखी जाती है।
धौनी बहुत ही सहजता और सरलता से सभी से मिले और सभी का हाल चाल जाना इस समय सोशल मीडिया पर महेंद्र धोनी की कई फोटो वायरल हो रहे हैं ,जिन्हें देखकर लग रहा है कि धौनी के सरल व्यवहार से बिल्कुल भी नहीं लग रहा था कि वे बहुत बड़े सेलिब्रिटी हैं। उनकी यही खूबी उनको महान बनाती है।
वहीँ दूसरी तरफ आजकल के यूट्यूबर बिना सिर पैर के और फूहड़ता से भरे ब्लॉग बनाकर कुछ प्रसिद्धि पा लेते हैं तो ख़ुद को बहुत बड़ा स्टार मानने लगते हैं। पैसा कमाने के लिए रीति रिवाजों के साथ साथ पहाड़ी संस्कृति का भी मज़ाक बना देते हैं।
ऐसे लोगों को महेंद्र सिंह धौनी से सीख लेनी चाहिए कि आप कितने ही बड़े बन जाओ लेकिन अपनी मिट्टी, अपने रीति रिवाज और संस्कृति को कभी भूलना चाहिए !
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