बिरेन्द्र सिंह कपकोटी
लमगड़ा(अल्मोड़ा)
उत्तराखंड को ऐसे ही देवभूमि का नाम नहीं दिया गया है। यहाँ पर बने छोटे-बड़े मंदिर,तीर्थ,धाम जाने अनजाने कितनी ही संख्या में पाए जाते हैं। जिनको देखकर या जिनके बारे में सुनकर अथवा पढकर लगता है कि वास्तव में यह भूमि पूर्व में देवताओं की ही भूमि रही होगी ऐसे ही Hills Headline अल्मोड़ा जनपद के लमगड़ा में स्थित 5 मंदिरों की संछिप्त जानकारी आपके सम्मुख प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे हैं . यदि आप उत्तराखंड या किसी अन्य प्रदेश में रहते हैं तो गर्मियों की छुट्टियों में पहाड़ों में जाने का मन कर रहा हो तो आइये हम आपको अल्मोड़ा के लमगड़ा विकास खंड में स्थित कुछ प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में बताते हैं!
मां विंध्यवासिनी बानड़ी देवी
इस मंदिर की बहुत अधिक मान्यता है. मां विंध्यवासिनी बानड़ी देवी का मंदिर जहां लोगों की मुराद पूरी होने पर भक्तों को अखंड दिए नौ दिनों के लिए जलाने पड़ते हैं. इसके साथ ही मां की श्रद्धा के साथ नौ दिनों तक आराधना करनी पड़ती है. यह देश का ऐसा पहला मंदिर है, जहां इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालु अखंड दिए जलाते हैं. इस मंदिर में नवरात्र के दौरान श्रद्धालुओं की सबसे अधिक भीड़ देखने को मिलती है. ऐसा माना जाता है कि अल्मोड़ा की स्थापना 1563 में चंद राजा बालो कल्याण चंद ने की थी. उस समय वह मां बाराही देवी का विसर्जन करना भूल गए. उस समय देवी ने राजा से कहा कि उन्हें वहीं स्थापित रहने दिया जाए. यहां देवी भगवती पिंडी के तीन शक्ति रूप में वास करती हैं. उसी समय से मंदिर में स्थानीय लोग पूजा अर्चना के लिए आते हैं. जिस किसी की भी मनोकामना पूरी हो जाती है, वह मां के आगे अखंड दिए जलाते हैं. जिसकी वहां के पंडित नौ दिनों तक देखरेख भी करते हैं. इसके अलावा मां को प्रसन्न करने के लिए सुहागपिटारी भी यहां श्रद्धालु चढ़ाते हैं इसके अलावा यहाँ महाशिवरात्रि के दिन भी लोग दूर दराज से आते हैं .
यह मंदिर लमगड़ा से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर पौधार के ऊपर धार में घने जंगल में स्थित है . इस मंदिर जाने के लिये आपको लगभग 3-4 किमी का सफर चढ़ाई में तय करना पड़ेगा !!
डोल आश्रम
कल्याणिका हिमालयम देवस्थानम आश्रम डोल (डोल आश्रम ) कनरा। जो कि लमगड़ा से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है . यहाँ की खूबसूरती का कोई मुकाबला ही नही है. इस आश्रम की स्थापना महाराज कल्याण दास जी ने की जो कि देश- विदेशों से महाराज जी के भक्तगण व पर्यटक बहुत मात्रा में यहां आते हैं और यह आश्रम घने जंगलों के बीच बना है।यहां पर महाराज जी द्वारा श्री यन्त्र की स्थापना की गई है स्थापना वर्ष में यहां पर महाराज जी द्वारा श्री मुरारी बापू जी की राम कथा आयेजित की गई थी अप्रैल माह में हर वर्ष स्थापना दिवस पर बडे- बडे धार्मिक आयोजन यहाँ किये जाते हैं यहां पर एक संस्कृत विद्यालय महाराज की कृपा से चलाया जाता है जिसमें गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा व रहने खाने की व्यवस्था प्रदान की जाती है और एक अस्पताल भी जन हितार्थ चलाया जाता है! क्षेत्र के जनप्रतिनिधि से लेकर बड़े बड़े नेता यहाँ महाराज जी का आशिर्वाद प्राप्त करने आते रहते हैं बाहरी लोगों के लिये यहाँ भोजन अथवा फलाहार , ठहरने के लिये भी व्यवस्था है . जानकारी के अनुसार पता चला कि इस वर्ष अप्रैल माह में महाराज जी द्वारा 23 अप्रैल से 30 अप्रैल श्री रमेश भाई ओझा प्रसिद्ध कथा वाचक जी द्वारा भागवत का आयोजन किया जा रहा है।
पंचदेवलेश्वर मंदिर
पंचदेवलेश्वर मंदिर भी लमगड़ा क्षेत्र का एक प्रसिद्ध मंदिर है. यह मंदिर कितना पुराना है इसका आंकलन करना बेहद मुश्किल है.
खूबसूरती तो ऐसी कि एक बार वहाँ चले गए तो दिल खुश हो जाएगा .
यह मंदिर लमगड़ा से 6-7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. जो कि ग्राम कपकोट, गैलाकोट, तिवारी जाख आदि गांवों के मध्य में है यह मंदिर लमगड़ा क्षेत्र के कई गांवों के लोगों का मुख्य मंदिर है . यह मंदिर मुख्यतः भगवान शिव जी का है यहाँ निकट वर्ती गांवों से लोग जुटकर भजन-कीर्तन करते हैं तथा भोले का प्रसाद बाँटते हैं। शिवरात्रि के दिन यहाँ पर व्यापारी तरह-तरह का सामान लेकर पहुँचते हैं और मंदिर के आस-पास प्रांगण में अपने-अपने स्टॉल लगाते हैं. यहाँ हर वर्ष भागवत कथा का आयोजन भी होता है !
कौमारी माता मंदिर
कौमारी माता का मंदिर लमगड़ा से कुछ ही दूरी पर ग्राम नौरा बघाड़ गांवों के बीच बसा हुआ है . ‘जय कौमारी धाम’ माँ भगवती का एक प्राचीन मंदिर है। प्रकृति की गोद में बसा ‘जय कौमारी धाम’ माँ कौमारी (कंयारि) का मंदिर लमगड़ा से ढाई-तीन किमी. आगे पैदल मार्ग ग्राम कनवालधुरा से होते हुए नौरा-बघाड़ गांवों के बीच में स्थित है। यह मंदिर लमगड़ा क्षेत्र के प्रमुख मंदिरों में से एक है। माता कौमारी को माँ भगवती का ही एक रूप माना गया है। यहाँ पर माता भगवती के साथ-साथ श्री गणपति, श्री शिव-पार्वती तथा श्री हनुमान आदि देवतागण भी स्थापित हैं। यहां पर एक हवन कुंड व दो जल कुंड भी हैं। इन जल कुंडों की एक खासीयत यह है कि इनका पानी गर्मी के दिनों में ठंडा और ठंड के दिनों में हल्का गर्म रहता है। इन जल कुंडों का पानी गंगा जल के बराबर ही पवित्र व निर्मल माना जाता है। माता का यह मंदिर एक विशालकाय शिलाखंड के अंदर गुफानुमा जगह में बना है। मंदिर परिसर में ठहरने के लिए छोटी-छोटी तीन-चार कुटिया भी बनी हुई हैं। शीत ऋतु में यहाँ का मौसम अत्यंत ठंडा व ग्रीष्म ऋतु में सुहावना रहता है। यहाँ वर्ष में वसंत पंचमी, मकर संक्रांति और महाशिव रात्रि के साथ-साथ नवरात्रियों में भी भक्तों की काफी भीड़ देखने को मिलती है। होली की चतुर्दशी को यहाँ पर आस-पास के कई गांवों से लोग ढोल मजीरा लेकर होली गायन को भी आते हैं। शिवरात्री की पूर्व संध्या पर यहां जागरण होता है, जिसमें निकट वर्ती गांवों से लोग जुटकर भजन-कीर्तन करते हैं तथा भोले का प्रसाद बाँटते हैं। शिवरात्रि के दिन यहाँ पर व्यापारी तरह-तरह का सामान लेकर पहुँचते हैं और मंदिर के आस-पास प्रांगण में अपने-अपने स्टॉल लगाते हैं। वसंत पंचमी व मकर संक्रान्ति (घुघुतिया त्यार) को लोग यहाँ अपने बच्चों का यग्योपवीत (बर्पन्द संस्कार) करने के लिए भी आते हैं। नौरा-बघाड़ के लोग ही यहाँ पर पूजा पाठ का कार्य करते हैं या फिर इस कार्य के लिए किसी पंडित को अनुमति देते हैं। यह लोग कौमारी माता को अपनी कुल देवी के रूप में पूजते हैं। कभी-कभी सावन या फिर चैत्र मास की नवरात्रि में क्षेत्र की जनता द्वारा इस मंदिर परिसर में श्रीमद भागवत कथा का भी आयोजन किया जाता है। प्राकृतिक रूप से इस मंदिर व आस-पास के वातावरण की अपनी एक अलग पहचान है। लगता है कि जैसे यह दुनिया का एक ऐसा कोना है जहाँ पर केवल हरे भरे पेड़ पौधे ही बनाए गए हैं। यहाँ पर माता के दर्शन के बाद मन में एक अलग दिलचस्प व शांति की अनुभूति होती है। यहाँ पर लोग दर्शन करने तथा मनौती माँगने के लिए दूर-दराज से आते हैं व फल प्राप्त करते है।
बिन्दु विशेष :-
▪️पैदल चलते हुए प्रकृति का आनंद।
▪️ एकांत में बसे होने के कारण ध्यान, योग,भजन व मानसिक शांति के लिए उपयुक्त स्थान।
▪️ बड़े-बड़े शिलाखंडों के द्वारा प्राकृतिक बनावट।
▪️चारों ओर हरे-भरे पेड़ पौधे,मनभावन हरियाली।
▪️पैदल चलने के कारण अहं भाव में कमी।
▪️ स्वच्छ मौसम में इस पूरे क्षेत्र से हिमालय के सुंदर दर्शन होते हैं।
▪️एक सुंदर व दिलचस्प अनुभूति का अनुभव।
▪️आस्था के कारण लोग अपना व्यवसाय माता के नाम पर शुरू करते हैं।
भगवान विष्णु
यह मंदिर भगवान विष्णु का एक प्राचीन मंदिर ग्राम डोल-शहरफाटक, विकास खंड लमगड़ा, जनपद अल्मोड़ा में बना हुआ है। जिसका उल्लेख कई सारे ग्रंथ और पुराणों में भी मिलता है . यहाँ पर महाशिवरात्रि के दिन मेला, समय समय पर धर्मिक कार्यक्रमो के आयोजन होते रहते हैं. इस मंदिर की दूरी की अगर बात करें तो यह मंदिर लमगड़ा से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है शिवरात्रि के दिन भी लोग बहुत दूर दूर से आकर भगवान विष्णु जी की पूजा करते हैं ।
यह जानकारी जुटाने में hills headline को विशेष सहयोग लोक गायक राजेन्द्र सिंह ढैला व स्थानीय लोगों ने दिया है व छायाचित्र सोशल मीडिया से प्राप्त किये हैं!
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